सुखार्थिनः कुतो विद्या नास्ति विधार्थिनः सुखम् ।
सुखार्थी वा त्यजेद् विद्यां विधार्थी वा त्यजेत् सुखम् ॥
अर्थात:- सुख चाहने वाले को विद्या कहाँ और विद्यार्थी को सुख कहाँ ? सुखार्थी (सुख चाहने वाले) को विद्या और विद्यार्थी (विद्या चाहने वाले) को सुख छोङ देना चाहिये। सुख और विद्या एक साथ संभव नहीं है।
काकचेष्टा बको ध्यानं श्वान निद्रा तथैव च।
अल्पाहारी, गहत्यागी, विधार्थी पञ्चलक्षणम्॥
अर्थात :- विद्यार्थी के पाँच लक्षण बताए गये है। पहला लक्षण है ‘काक चेष्टा’- कौए की तरह प्रयत्नशील रहना। क्योंकि उसकी चेष्टा विलक्षण होती है। जब तक वह लक्ष्य ना पा ले , कोशिश में लगा रहता है। दूसरा लक्षण है ‘बको ध्यानं’- अर्थात् बगुले की तरह पूर्ण मनोयोग से अपना ध्यान लगाकर भक्ष्य (लक्ष्य) हासिल करना। मन लगाकर ग्रहण की गयी विद्या ठीक से स्मृति में बैठती है। तीसरा लक्षण है ‘श्वान निद्रा’- कुता सदैव सावधान रहते हुए नीदं लेता है। थोङी सी आहट पर सक्रिय हो जाता है। छात्र के लिये सीमित निद्रा लेना पर्याप्त है। अप्ने आलस्य व प्रमाद को छोङकर कर्तव्य व दायित्व को समझना। चौथा लक्षण है ‘अल्पाहारी’- अधिक भोजन लेने पर निद्रा क प्रभाव जल्दि होगा और विलम्ब तक सोना पङेगा। विद्यार्थी को पौष्टिक अल्पाहार जरूरी है। पाँचवाँ लक्षण है ‘गर्हत्यागी’- घरेलु सुख और आराम का जीवन विद्यार्थी के लिए उचित नही है। विद्यार्थी जीवन त्याग और तपस्या क जीवन है।